सत्ता का भूखा नेता शुक्ला, सरकार गिराने की साज़िश रचता है। किस्मत के मारे दो अजनबियों को पता चलता है कि उनका दुश्मन एक ही शख्स है और दोनों ही बदले की आग में जल रहे हैं।
गुस्सैल बांकेलाल और अंसारी के बीच दरार डालने के लिए शुक्ला एक योजना बनाता है। वहीं बेला, अंसारी के उन पुराने साथियों के हत्थे चढ़ जाती है, जो उससे अपना हिसाब चुकता करने आए हैं।
अगवा होने के बाद बेला पूरा मामला अपने हाथ में लेने के लिए मजबूर हो जाती है। गैंग में घबराहट बढ़ जाती है, जब नशेड़ी बांकेलाल मिशन को खतरे में डाल देता है।
सूर्य ग्रहण के दिन, चोरी को अंजाम देने का काम शुरू होता है। पर पूरी सावधानी से बनाई गई टीम की योजनाओं में अचानक आने वाले मुसीबतें हलचल पैदा कर देती हैं।